Vish Vriksha

Vish Vriksha

by Bankimchnadra Chattopadhyay
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Overview

जिस विष-वृक्ष के बीज रोपने से लेकर फलोत्पत्ति व फल-भोग तक का आख्यान आप पढ़ रहे हैं, वह सभी के घर-आंगन में रोपा हुआ है। दुश्मन का प्राबल्य इसका बीज है, जो घटनाधीन होकर सारे क्षेत्र में व्याप्त होता है। कोई ऐसा मनुष्य नहीं है, जिसका चित्त राग-द्वेष, काम-क्रोध आदि से अछूता हो। ज्ञानी व्यक्ति भी घटनाधीन होकर इन सारे दुश्मनों से विचलित हो जाते हैं। लेकिन मनुष्य, मनुष्य में अन्तर यह है कि कोई अपनी उच्छलित मनोवृत्ति पूरी तरह संयत कर सकता है और संयत रहता है और ऐसा व्यक्ति महात्मा होता है, जबकि कोई व्यक्ति संयत नहीं रह पाता और ऐसा बलि ही छिप-वृक्ष का बीज रोपता है। चित्तसंयम का अभाव अंकुर है, इसी से वृक्ष बढ़ता है। यह वृक्ष अत्यन्त शक्तिशाली होता है, एक बार पुष्ट हो गया तो फिर इसका नाश नहीं। इसकी शोभा भी आँखों को बड़ी प्रिय लगती है। दूर से इसके विविध वर्ण पल्लव और प्रस्फुटित फूल देखने में बेहद मनोहारी प्रतीत होते हैं। लेकिन इसके फल विषाक्त होते हैं, जो खाता है, वही मर जाता है।
- बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय

Product Details

ISBN-13: 9789390963317
Publisher: Prabhakar Prakshan
Publication date: 11/03/2021
Sold by: Barnes & Noble
Format: eBook
File size: 419 KB
Language: Hindi
From the B&N Reads Blog

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