Suroor-e-Sarmadi

नाशाद साहब की शायरी में दर्द का एक ख़ास स्थान है। स्वयं उनके शब्दों में, ‘मेरे यहाँ गम का मर्तबा बहुत बुलंद है। वह एक ऐसा पाक़ जज़्बा है जो आदमी को इंसान बना दे, गम अंगेज या उम्मीद शिकन नहीं - वो दूसरों से मुहब्बत करना, उनके दुःख में शरीक होना, उनका हाथ बटाना सिखाता है’; मौत क्या है आप ही खुल जाएगा पहले समझो ज़िंदगी क्या राज़ है जात पात और धर्म के भेद भाव को वह नहीं मानते कुछ समझते ही नहीं अहले-हरम वरना जो सज्दा है काबा साज़ है सीधी सादी भाषा में अनुभूतियों को व्यक्त करना उनकी ख़ासियत है। आग देता है बागबाँ किसको हाय जालिम, यह आशियाना है उनकी शायरी में जीवन के हर रंग को जगह मिली है।

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नाशाद साहब की शायरी में दर्द का एक ख़ास स्थान है। स्वयं उनके शब्दों में, ‘मेरे यहाँ गम का मर्तबा बहुत बुलंद है। वह एक ऐसा पाक़ जज़्बा है जो आदमी को इंसान बना दे, गम अंगेज या उम्मीद शिकन नहीं - वो दूसरों से मुहब्बत करना, उनके दुःख में शरीक होना, उनका हाथ बटाना सिखाता है’; मौत क्या है आप ही खुल जाएगा पहले समझो ज़िंदगी क्या राज़ है जात पात और धर्म के भेद भाव को वह नहीं मानते कुछ समझते ही नहीं अहले-हरम वरना जो सज्दा है काबा साज़ है सीधी सादी भाषा में अनुभूतियों को व्यक्त करना उनकी ख़ासियत है। आग देता है बागबाँ किसको हाय जालिम, यह आशियाना है उनकी शायरी में जीवन के हर रंग को जगह मिली है।

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by Nashad Kanpuri
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Overview

नाशाद साहब की शायरी में दर्द का एक ख़ास स्थान है। स्वयं उनके शब्दों में, ‘मेरे यहाँ गम का मर्तबा बहुत बुलंद है। वह एक ऐसा पाक़ जज़्बा है जो आदमी को इंसान बना दे, गम अंगेज या उम्मीद शिकन नहीं - वो दूसरों से मुहब्बत करना, उनके दुःख में शरीक होना, उनका हाथ बटाना सिखाता है’; मौत क्या है आप ही खुल जाएगा पहले समझो ज़िंदगी क्या राज़ है जात पात और धर्म के भेद भाव को वह नहीं मानते कुछ समझते ही नहीं अहले-हरम वरना जो सज्दा है काबा साज़ है सीधी सादी भाषा में अनुभूतियों को व्यक्त करना उनकी ख़ासियत है। आग देता है बागबाँ किसको हाय जालिम, यह आशियाना है उनकी शायरी में जीवन के हर रंग को जगह मिली है।


Product Details

ISBN-13: 9788121254861
Publisher: Arts & Science Academic Publishing
Publication date: 06/30/2019
Sold by: Barnes & Noble
Format: eBook
Pages: 230
File size: 338 KB
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