“सुचरिता” कहानी-संग्रह, डॉ. तारा सिंह की कहानी चेतना की सातवीं उत्थान की परिचायिका है| इनमें कुल सोलह कहानियाँ हैं, जो परम रहस्यमय तथा चमत्कारिक होने के साथ-साथ सुख-दुःख के अनेकों रंग समेटे हुई, आँधी-धूप-वर्षा को झेलती हुई खेतों में मिलती है, तो कृषक के खलिहान में भी, पाकशाला की अग्नि पर तपते हुए पात्र में भी| इनका मानना है कि अनावश्यक बातें भी अनाहूत तमाशबीनों के सामान स्थान घेर लेते हैं, जिससे उसके अर्थप्रभाव में अवरोध भी उत्पन्न हो सकता है| इसलिये कहानीकार को इन सब बातों से बचना चाहिए, क्योंकि कहानी का सृजन करना, मानव के जितने भी सृजन हैं, उनमें सबसे अधिक रहस्यमय सृजन है| इसमें अंत:करण का संगठन करने वाले सभी अवयव, मानचित्त, बुद्धि और अहंकार एक साथ सामंजस्यपूर्ण स्थिति में कार्य करते रहे हैं| इनके संरक्षण के बिना,मनुष्य के बौद्धिक तथा संवेदनजन्य संस्कार पानी पर खींची लकीर के समान मिट जाते हैं|
डॉ. तारा की कहानियों को पढ़ने के बाद लगता है, ये गढ़ी नहीं गई हैं, बल्कि घटित हुई हैं; कालप्रवाह का वर्षों में फैला हुआ, चौड़ा-पाट उन्हें एक दूसरे से कहीं मिलने नहीं देता| परंतु विचार में उनकी स्थिति एक नदी तट से प्रवाहित दीपों के समान है| कुछ कम गहरी मंथरता के कारण उसी तट पर ठहर जाते हैं, कुछ समीर के झोंके से उत्पन्न-तरंग-भंगिमा में पड़कर दूसरे तट की दिशा में वह चलते हैं, तो कुछ बीच-धार की तरंगाकुलता के साथ एक अव्यक्त क्षितिज की ओर बढ़ जाते हैं| परन्तु दीपदान देने वाले उन्हें अपने अलक्ष्य छाया में एक रखते हैं| ताराजी को भी अपनी कहानियों पर एक ऐसी आस्था है| ईश्वर! इनकी आस्था बनाए रखे|
“सुचरिता” कहानी-संग्रह, डॉ. तारा सिंह की कहानी चेतना की सातवीं उत्थान की परिचायिका है| इनमें कुल सोलह कहानियाँ हैं, जो परम रहस्यमय तथा चमत्कारिक होने के साथ-साथ सुख-दुःख के अनेकों रंग समेटे हुई, आँधी-धूप-वर्षा को झेलती हुई खेतों में मिलती है, तो कृषक के खलिहान में भी, पाकशाला की अग्नि पर तपते हुए पात्र में भी| इनका मानना है कि अनावश्यक बातें भी अनाहूत तमाशबीनों के सामान स्थान घेर लेते हैं, जिससे उसके अर्थप्रभाव में अवरोध भी उत्पन्न हो सकता है| इसलिये कहानीकार को इन सब बातों से बचना चाहिए, क्योंकि कहानी का सृजन करना, मानव के जितने भी सृजन हैं, उनमें सबसे अधिक रहस्यमय सृजन है| इसमें अंत:करण का संगठन करने वाले सभी अवयव, मानचित्त, बुद्धि और अहंकार एक साथ सामंजस्यपूर्ण स्थिति में कार्य करते रहे हैं| इनके संरक्षण के बिना,मनुष्य के बौद्धिक तथा संवेदनजन्य संस्कार पानी पर खींची लकीर के समान मिट जाते हैं|
डॉ. तारा की कहानियों को पढ़ने के बाद लगता है, ये गढ़ी नहीं गई हैं, बल्कि घटित हुई हैं; कालप्रवाह का वर्षों में फैला हुआ, चौड़ा-पाट उन्हें एक दूसरे से कहीं मिलने नहीं देता| परंतु विचार में उनकी स्थिति एक नदी तट से प्रवाहित दीपों के समान है| कुछ कम गहरी मंथरता के कारण उसी तट पर ठहर जाते हैं, कुछ समीर के झोंके से उत्पन्न-तरंग-भंगिमा में पड़कर दूसरे तट की दिशा में वह चलते हैं, तो कुछ बीच-धार की तरंगाकुलता के साथ एक अव्यक्त क्षितिज की ओर बढ़ जाते हैं| परन्तु दीपदान देने वाले उन्हें अपने अलक्ष्य छाया में एक रखते हैं| ताराजी को भी अपनी कहानियों पर एक ऐसी आस्था है| ईश्वर! इनकी आस्था बनाए रखे|
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Product Details
BN ID: | 2940164950989 |
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Publisher: | ??. ???? ???? |
Publication date: | 11/11/2020 |
Sold by: | Smashwords |
Format: | eBook |
File size: | 203 KB |
Language: | Hindi |