kaisi ho ciriya?

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by Sushil Jain
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Overview

वर्तमान में मानव-समाज जिस सांस्कृतिक और पारिस्थित्कीय संकट से गुजर रहा है वह अभूतपूर्व है। हमारे चारों और बढती व्यावसायिकता ने परिस्थिति को और भी गंभीर बना दिया है। प्रस्तुत काव्य-संग्रह में 'चिड़िया' के रूपक के माध्यम से समकालीन मानव-समाज की इन्हीं विसंगतियों को रेखांकित करने का प्रयास किया गया है।


Product Details

BN ID: 2940152519242
Publisher: Sushil Jain
Publication date: 10/17/2014
Sold by: Smashwords
Format: eBook
File size: 174 KB
Language: Hindi

About the Author

जन्म ३० जून १९६१ को मैनपुरी (उ. प्र.) भारत में। शिक्षा स्नातक (B. A .) संप्रति भारत में भारतीय स्टेट बैंक में सहायक प्रबंधक के रूप में सेवाएं दे रहा हूँ। मेरा मानना है कि हम सभी मनुष्य जो आज पृथ्वी नामक इस ग्रह पर निवास कर रहे हैं, एक प्रकार से पर्यटक की भूमिका में हैं। एक दिन हमें यहाँ से चले जाना है। हम सबका यह सामूहिक दायित्व है कि, आने वाली पीढ़ियों के लिए अपने इस प्रिय ग्रह को पहले से बेहतर हालत में छोड़ कर जाएँ। जिससे हमारी आने वाली संताने हम पर गर्व कर सकें। मेरा विश्वास है कि जीवन के विविध रूपों में सभी पवित्र हैं। सभी जीना चाहते हैं एक भरपूर जीवन, मरना कोई नहीं चाहता, नन्ही चींटी भी नहीं। सबको जीने का एक समान अधिकार है। हमें इस अधिकार का सम्मान करना सीखना ही होगा। हमें ध्यान रखना होगा कि भविष्य के गर्भ में पल रही हमारी संताने कहीं फूलों की जगह प्रश्न-चिन्हों से न ढक दें हमारी समाधियों को।

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