kaisi ho ciriya?
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वर्तमान में मानव-समाज जिस सांस्कृतिक और पारिस्थित्कीय संकट से गुजर रहा है वह अभूतपूर्व है। हमारे चारों और बढती व्यावसायिकता ने परिस्थिति को और भी गंभीर बना दिया है। प्रस्तुत काव्य-संग्रह में 'चिड़िया' के रूपक के माध्यम से समकालीन मानव-समाज की इन्हीं विसंगतियों को रेखांकित करने का प्रयास किया गया है।
kaisi ho ciriya?
वर्तमान में मानव-समाज जिस सांस्कृतिक और पारिस्थित्कीय संकट से गुजर रहा है वह अभूतपूर्व है। हमारे चारों और बढती व्यावसायिकता ने परिस्थिति को और भी गंभीर बना दिया है। प्रस्तुत काव्य-संग्रह में 'चिड़िया' के रूपक के माध्यम से समकालीन मानव-समाज की इन्हीं विसंगतियों को रेखांकित करने का प्रयास किया गया है।
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Product Details
BN ID: | 2940152519242 |
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Publisher: | Sushil Jain |
Publication date: | 10/17/2014 |
Sold by: | Smashwords |
Format: | eBook |
File size: | 174 KB |
Language: | Hindi |
About the Author
From the B&N Reads Blog