संग्रह में शामिल ये कहानियाँ मेरी अपनी अनुभूति की पेशकश हैं। एक कहानी दूसरे को और दूसरी तीसरी को जन्म देती है। कुछ कल्पना कुछ हकीकत की नींव पर खड़ी ये कथाएँ हमारे ही घर-परिवेश की झाँकियाँ हैं। बस अपने आसपास देखी, सुनी, महसूस की हुई अनुभूतियों को शब्दों में आकार देकर कल्पना और यथार्थ की आधारशिला पर खड़ा किया है। कुल मिलाकर ये कहानियाँ मानसिक द्वंद्व की उपज हैं, जहाँ हर पात्र अपनी परिधि में संघर्षमय रहता है।
कई कहानियाँ आम इंसान की बाहर और भीतर की कशमकश है, जो उनके अनुभव-क्षेत्र के वैविध्य और विस्तार में शामिल रहती है। कहीं घर-गृहस्थी की संघर्षमय स्थिति (वसीयत), कहीं स्कूल और कॉलेज के वातावरण का बोध कराती (जंग जारी है), रिश्तों की उलझन, देस-परदेश की संस्कृति व संस्कारों की विपरीत मनोस्थिति (बेमतलब के रिश्ते), जात-पात, रीति-रस्मों के अंतर्द्वंद्व व भेदभाव की समस्याओं और समाधानों की एक पेशकश है (घुटन भरा कोहरा), और तो और पुराने मूल्यों के प्रति आस्था की अभिव्यक्ति, जीवन की प्रौढ़ अवस्था के अंतिम चरण की दुविधाजनक स्थितियों के उल्लेख भी हैं, (आखरी पड़ाव)। परिवेश में अपनी पारिवारिक, सामाजिक व साहित्यिक परिधियों में रहते हुए निबाह व निर्वाह की कशमकश के दौर से गुज़रते हुए समाज के निरंकुश शासन में कुचले हुए (नई माँ), प्रताड़ित तबकों पर, कहीं सियासी तनाव के जाल की उलझनों में धँसते हुए हालातों पर (मैं और ताजमहल), तो कभी स्वार्थ के बेरहम शिकंजों में फँसी ज़िन्दगी का चित्रण किया है (जियो और जीनो दो), जो मानवता के हृदय को आज भी छलनी कर जाता है। उन स्थितियों व परिस्थितियों को उनकी पूरी मनोवैज्ञानिकता और यथार्थता में उभारने की एक कोशिश है, जहाँ अभिव्यक्त किए हुए अनुभव सच के ठोस मुवाद के साथ-साथ कल्पना से भी जुड़े हुए हैं।